कलमदंश के इस अंक में मिलिये
पानीपत के वरिष्ठ शायर ज़नाब अख़ग़र पानीपती साहब से
इनका जन्म १ अगस्त १९३४ को मुल्तान में हुआ
इंटर तक शिक्षा पानीपत में ही और अब पानीपत शुगर मिल की नौकरी से सेवानिवृत
अख़ग़र साहब के अब तक ३ संग्रह प्रकाशित
उजालों का सफर उर्दू में
अर्पण हिंदी में
अक्षर नतमस्तक हैं हिंदी में
मुशायरों व कविसम्मेलनों में भागीदारी करते हुए अखंग़र साहब पानीपत रत्न एवं विविध सरकारी एवं गैरसरकारी सम्मानों से विभूषित
प्रस्तुत हैं अख़ग़र पानीपती की ग़ज़ल
तू आप अपनी नज़र में बुरा है मियां
तो कौन शख्स ज़माने में पारसा है मियां
हरेक अपने अहमाल का मुरक्का है
न कोई अच्छा न कोई यहां बुरा है मियां
न जाने कब कोई आंधी उड़ा के ले जाये
हयात गोया परिंदे का घोंसला है मियां
वफा की जिंस तो दुनिया से हो गई नापेद
वफ़ा के नाम पे बस काम चल रहा है मियां
किसी के जौर के शाकी तो हम नहीं लेकिन
हमारे जप्त की कोई तो इंतिहा है मियां
फ़ना के साये में रह कर खुशी से जीता है
बशर के देखने लायक ये होंसला है मियां
मेरे वजूद में सुकरात आ गया शायद
ग़मों के ज़हर को पीकर ये झूमता है मियां
कड़कती धूप में अख़गर पे जो है सायफिग़न
किसी फक़ीर की वो दी हुई दुआ है मियां